Success Story : बुजुर्ग महिला का दिलचस्प कहानी, 100 रु का कारोबार को बना डाला 100 करोड़

Success Story : अक्सर ऐसा देखा जाता है की गरीबी इंसान की सफलता में आचडन बन जाता है. कभी कोई पढ़ लिख कर सफलता पाना चाहता है या फिर कोई बिजनेस करके सफलता पाना चाहता है दोनों ही स्थिति में गरबी बीच में आ जाती है. ना उनके पास पढ़ने के लिए पैसे होते हैं और ना ही बिजनेस में इन्वेस्टमेंट करने के लिए.

लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि यही गरीबी हमारी सफलता का कारण भी बनता है. अपने गरीबी को देखकर कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसका कभी कोई कल्पना भी नहीं करता है. आज हम आप सभी को एक ऐसे ही इंसान की कहानी बताने वाले है. जो खेती करके आज करोड़ कमाती है.

हम लोग जब कभी भी खेती का बात करते हैं तो हम लोग सिर्फ पुरुषों की मेहनत की बात करते हैं. लेकिन हम लोग यह भूल जाते हैं की पुरुषों से ज्यादा तो हमारी घर की महिलाएं मेहनत करती हैं. वे लोग यहीं गरीबी में पैदा होकर और पूरे जीवन भर मेहनत करके वहीं मर जाते हैं. ना कोई ख्वाहिश पूरी होती हैं और ना ही जिंदगी का लुफ्त उठा पाते हैं.

लेकिन आज हम आप सभी को मुजफ्फरपुर जिले के आनंदपुर गांव के रहने वाले आचार बेचने वाली चाची के बारे में बताने वाले हैं. जिन्होंने 100 रुपए से अचार बेचने का शुरूआत किया था और आज एक साल में करोड़ों रुपए कमाती हैं.

इस लेख के माध्यम से आज हम आप सभी को ऐसे बुजुर्ग महिला की कहानी बताने वाले हैं जिन्होंने सो रुपए से अचार बेचना शुरू किया था और आज सालाना 100 करोड़ों रुपए कमाती हैं.

आज हम आप सभी को एक ऐसे बुजुर्ग महिला के बारे में बताने वाले हैं जिसने गांव के लोगों का परवाह किए बगैर साइकिल चलाना सीखी और अपना खुद का अचार बेचने का बिजनेस शुरू की. अगर आप इस बुजुर्ग महिला की पूरी कहानी जानना चाहते हैं तो इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें.

गरीबी ने खेती करने को किया मजबूर :-

Success Story : कभी-कभी गरीब इंसान पर इतना भारी पड़ जाता है कि वह चाह कर भी कुछ और अच्छा नहीं कर पाता है. और फिर मजबूरन उसे खेती ही करनी पड़ती है आज हम जिस बुजुर्ग महिला के बारे में बात कर रहे हैं.

उन्होंने अपने घर की गरीबी और पैसों की तंगी को देखते हुए खेती करना शुरू की. बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के आनंदपुर गांव के रहने वाली राजकुमारी देवी ने सबसे पहले हैं खैनी यानी कि तंबाकू की खेती करनी शुरू की. और जब उस खेती से उन्हें थोड़ा बहुत फायदा हुआ तो फिर उन्होंने दूसरा खेती करने का शुरुआत की.

राजकुमारी देवी ने खैनी यानि तंबाकू के खेती से हुए फायदे को दूसरे खेती मैं लगाने का सोची. उन्होंने पपीता की खेती करनी शुरू की. पपीता की खेती करने के लिए उन्होंने बीज पास के ही डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर से लाती थी.

राजकुमारी जी बताती हैं कि उस समय 1995 में जब उन्होंने खेती करना शुरू की उस समय 1 किलो पपीते का दाम ₹5 था इसलिए उन्होंने पूरे 1 बीघा जमीन पर पपीते का खेती की थी. वह बताती हैं कि एक पेड़ से लगभग 70 से 80 किलो पपीता निकलता था जिसे बेचकर अच्छी खासी कमाई होती थी.

एक इंटरव्यू में वह बताती हैं कि पपीता की खेती करने के बाद उन्होंने दूसरे अलग-अलग सब्जियों का खेती करने का शुरुआत किया. और फिर धीरे-धीरे वह फेमस होने लगी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के कार्यक्रम में जाने लगी.

खेती की समझ बढ़ी तो कृषि मेला खेती की प्रदर्शन में शामिल होने का दौरा शुरू हो गया. और फिर उन्हें उनका उपजाया गया बेहतरीन खेती की वजह से उन्हें पुरस्कार भी दिया गया. और जब वह पूरी तरह से फेमस हो गई तो फिर उन्हें पद्मश्री अवार्ड से भी नवाजा गया.

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लड़कियों का साइकिल चलाना समाज में पाप समझा जाता था :-

राजकुमारी जी बताती है कि उस समय 90 के दशक में साइकिल चलाना गांव की महिलाओं के लिए पाप था. उस समय आने जाने के लिए बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. 90 के दशक में आने जाने के लिए उस गांव में ना हीं बस और ना ही किसी अन्य वाहनो का साधन था.

लेकिन उन्हें सब्जियां और अंचार बेचने के लिए शहर जाना पड़ता था इसलिए उन्होंने साइकिल चलाना सीखना शुरू की.लेकिन इसमें भी उन्हें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा उनका साइकिल चलाना गांव के लोगों को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी.

एक बार तो साइकिल सीखते हुए वह गिर गई और चोट लगी और जब वह डॉक्टर के पास गए तो डॉक्टर ने उन्हें बोला कि इस उम्र में हड्डियों का टूटना काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है इसीलिए साइकिल चलाना छोड़ दीजिए, पर इसके बावजूद भी वह हार नहीं मानी और वह साइकिल चलाना सीखी.

आचार क्यों बनाने लगी :-

उस समय जब वहाँ के लोगों के साथ मिलती थी तो लोग उन्हें बताते थे कि खेती में ज्यादा फायदा नहीं है. यह सब सुनकर उन्हें बहुत बुरा लगता था इसीलिए फिर उन्होंने बहुत सारे महिलाओं का एक समूह ग्रुप बनाया और फिर अचार बनाना शुरू की.

उस समय उनके पास 350 से ज्यादा महिलाओं का समूह था. वह अचार को बनाकर खुद बेचने के लिए शहर जाती थी. और फिर कुछ समय बाद उन्होंने वहां के महिलाओं को भी बताया और सिखाया कि किस प्रकार अंचार को सभी लोगों के पास बेचना है.

वह सभी जगह जैसे रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन और अस्पताल खुद से ले जाकर 5 – 5 रुपए में बेचा करती थी. उस समय भी बहुत से लोग उनका मजाक उड़ाया करते थे. लेकिन वह अपने हाथों से अचार बनाया करती थी घर का अचार था इसीलिए लोगों को बहुत ज्यादा पसंद आने लगा. और फिर उनका बिक्री बढ़ने लगा.

पद्मश्री कब मिला :-

वह बताते हैं कि उनका अचार काफी डिमांड में रहता है. जिसके वजह से उन्होंने 2 कंपनियों के साथ एग्रीमेंट भी है जिससे कि वह महीना में 10 से 12 लाख रुपए कमाती है. वह बताती हैं कि उन्हें 11 मार्च साल 2019 में उन्हें उनकी इसी काम के लिए पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था.

इस काम में उन्हें सरकार की ओर से भी भरपूर सहयोग मिला. आज उनके यहाँ हजारों महिलाएं आकर काम करती है और उनकी गरीबी अब दूर हो चुका हैं.

निष्कर्ष :-

आज हमने आप सभी को अपने इस लेख के माध्यम से एक ऐसी बुजुर्ग महिला के बारे में बताया है. जिन्होंने 100 रुपए से अचार बेचना शुरू किया और आज साल में 100 करोड़ कमाती है. उन्हें साल 2019 में पद्मश्री अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था.

वह एक गरीब परिवार के होने के बावजूद भी आज हजारों लोगों को काम देती है. उन से काम करवाती है. उम्मीद करता हूं आप सब को हमारा ये लेख पसंद आया होगा अगर आप आगे भी इसी तरह की न्यूज़ अथवा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो इस वेबसाइट पर हमेशा आते रहे.

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